ईदगा उद्गा नी केर भेजी
हम ता पहाडा का लोग छो
ई शहर मा ऐकि हमत
अपनु पहाड़ थेकि भूली गयों
हवा पाणी ऊ
मस्ती मौज
खेत, श्यारा और
गोर बकरों की खोज
ऊ सुच्दा हवाला हम
किद्गा
यख कमाना छों
कैल जाणी हमर
दिल की
हम किद्गा पछताना छो
ये पुटुक की खातिर हमल
सब घर बार छोड़याली
अब मन मा उठाना छीन
फिर भांड्य रणा सवाल
याद जरुर कर्दों हम
ऊँ ऊँचा निचा डांडों
थे
बिसर नी सकदा हम
ऊँ टेढ़ा मेढ़ा बांटों
थे
किले हम करना छो
यख अपनी दुर्गत
हुम्थेकि याद कर्नुचा
हमरु गौं चुरगढ़
आज चल जोंला
या भोल पर्बात
बस यी सोची की
कटना छीन दिन रात
यख ता हर कदम ब्स्युन चा
गुसा, द्वेष अर घमंड
हुम्थेकि प्यारु चा
हमरु सुरिलू उत्तराखंड
संदीप सिंह रावत (पागल)
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